इतिहास का पुनर्लेखन नहीं कर रहे है बल्कि इसे व्यापक बना रहे - धर्मेंद्र प्रधान

इतिहास का पुनर्लेखन नहीं कर रहे है बल्कि इसे व्यापक बना रहे - धर्मेंद्र प्रधान

नई दिल्ली। इतिहास के पुनर्लेखन के मुद्दे पर लोकसभा में सोमवार को प्रश्नकाल के दौरान केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और कांग्रेस सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी आपसी नोकझोंक हुई। प्रधान ने इससे जुड़े सवाल के जवाब में साफ किया कि इतिहास का पुनर्लेखन नहीं कर रहे है, बल्कि इसे व्यापक स्वरूप दे रहे है।

मनीष तिवारी लगाया आरोप
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आइसीएचआर) फिलहाल इतना ही काम कर रहा है। बावजूद इसके मनीष तिवारी इससे संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने मंत्री पर गलत जवाब देने का आरोप लगाया। केंद्रीय मंत्री प्रधान ने भी इस दौरान उनके आरोपों को खारिज किया और कहा कि चिल्लाने से वह जो कह रहे है वह सच नहीं हो जाएगा।

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गुजरात के मानगढ़ धाम का जिक्र
प्रधान ने इस दौरान गुजरात के मानगढ़ धाम का जिक्र करते हुए कहा कि वर्ष 1913 में देश की आजादी के लिए गुरु गोविंद सिंह जी के नेतृत्व में डेढ़ हजार लोगों ने यहां शहादत दी थी। लेकिन इतिहास में इस शहादत का कोई जिक्र नहीं है। इसी तरह देश की आजादी के लिए लड़ने वाले आंध्र प्रदेश के आदिवासी नेता अल्लूरि सीताराम राजू का भी इतिहास में कोई स्थान नहीं है।

ओडिशा में 1817 में अंग्रेजों के खिलाफ बख्शी जगबंधु व विधाशर महापात्र ने भी आंदोलन चलाया था। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने तो इसे आजादी के आंदोलन की पहली सही लड़ाई नाम दिया था। लेकिन यह सारा विषय आज इतिहास का हिस्सा नहीं है।

यह इतिहास के पन्नों में आना चाहिए: प्रधान
प्रधान ने कहा कि देश पिछले 11 से 12 सौ सालों के बीच विभिन्न कालखंड़ों में पराधीनता से गुजरा है। ऐसे में यदि हम इसके आधार पर देश समीक्षा करें, तो दक्षिण से उत्तर और पूरब से पश्चिम में कई ऐसे साम्राज्य रहे, जिन्होंने देश की संस्कृति, सभ्यता और अस्मिता को उजागर करने के लिए अनेक काम किए। यह इतिहास के पन्नों में आना चाहिए। हम इसे लेकर बड़ी सरल रेखाएं खींच रहे है।

पुनर्लेखन से जुड़े सवाल को कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने उठाया
गौरतलब है कि इससे पहले इतिहास के पुनर्लेखन से जुड़े सवाल को उठाते हुए कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि आईसीएचआर यह बात सार्वजनिक तौर पर कह रही है कि हम इतिहास का पुनर्लेखन कर रहे है। हम कंप्रिहेंसिव हिस्ट्री आफ इंडिया लिख रहे है। उसके बाहर से तेरह वाल्यूम छपेंगी। पहली वाल्यूम मार्च 2023 में आएगी। इस प्रोजेक्ट में सौ से ज्यादा इतिहासकार शामिल है।

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